एक कुप्रथा (कहानी) प्रतियोगिता हेतु23-Feb-2024
दिनांक- 23,0 2, 2024 दिवस- शुक्रवार प्रदत्त विषय- एक कुप्रथा (कहानी) प्रतियोगिता हेतु
भारतवर्ष में जाति प्रथा, पर्दा प्रथा, बलि प्रथा, सती प्रथा, ज़ौहर प्रथा, तीन तलाक जैसी अनेकानेक कुप्रथाएंँ व्याप्त हैं। उन्हीं कुप्रथाओं में एक कुप्रथा है किसी भी शुभ काम में विधवा का आगे न पड़ना।
इसके पीछे यह मान्यता है कि यदि हम किसी शुभ काम के लिए निकल रहे हैं और हमारे सामने विधवा पड़ जाती है तब हमारा वह काम किसी भी क़ीमत पर सफ़ल नहीं होता है।
किंतु, मेरा यह मानना है कि बनाने वाला भी ईश्वर और बिगड़ने वाला भी ईश्वर ही है। ईश्वर की मर्ज़ी के आगे किसी की कुछ भी नहीं चलती। अगर ऐसा होता तो हम अपने किसी भी प्रतिद्वंद्वी के आगे जैसे ही वह घर से बाहर निकलने वाला होता उसके आगे एक विधवा खड़ा कर देते और उसका काम सफ़ल नहीं होता, क्या ऐसा हो सकता है? नहीं, तो जब ऐसा नहीं हो सकता तब जब हम अपने घरेलू कामों के लिए बाहर निकलते तब कैसे यह संभव है!
मेरा तो यह मानना है कि विधवा के आगे पड़ने से हमारा काम बिगड़े न बिगड़े लेकिन अगर विधवा के अंतर्रात्मा को कष्ट होता है और उसके अंदर से जो हाय निकलती है उससे हमारा काम ज़रूर बिगड़ जाएगा।
तो, आज मैं आपको इसी कुप्रथा से जुड़ी एक कहानी सुनना चाहूंँगी वह कहानी कुछ इस प्रकार है-
बात करीब 15 वर्ष पुरानी है मैं सरला माई के यहांँ किराए पर रहती थी। सरला माई का एक भरा- पूरा परिवार था और उनके यहांँ चार किराएदार रहते थे। एक दिन सरला माई किसी के यहांँ उत्सव में जा रही थीं। मैने देखा कि माई की साड़ी सीकुड़ी हुई थी। मैने सरला माई से कहा, माई आपक साड़ी बहुत सिकुड़ल बा नीक नईखे लागत एकरा के बदल देहीं।
तब माई बोलीं, जाए द बिटिया बूढ़, पूरनिया के-के देखत ह। दू ठे धोवे के परी। अब हमरा से सपर ना पावेला।
तब मैने माई से कहा,दू मिनट बस रुकीं हम तुरंते आवतानी। और मैं अंदर से अपनी एक हल्के रंग की साड़ी लेकर आई और माई को देते हुए बोली, माई आप एकरा के पहिन लेहीं धोवे क चिंता जीन करीं आप ,हम धो लेहीब।
मेरे हाथ में मेरी साड़ी देखकर और मेरी बात को सुनकर माई मुझसे दूर हट गईं और बोलीं ,-ना-ना बिटिया तू एहीवातिन हऊ हम तोहार साड़ी ना पहिन सकी लाँ। भगवान हमार बिगाड़ देहलँ तोहार एहिवात बनल रहे।
माई के मुंँह से इस तरह की बात सुनकर मैं माई के पास जाकर उनको पकड़ ली और उनके हाथ में ज़बरदस्ती साड़ी देते हुए बोली, केहू के छुअला से, केहू क कपड़ा पहिरला से कुछ ना होला, भगवान जवन चाहेलँ तवने होला। ऐसे आप मन में कवनो खोभ लेहले बिना हमार साड़ी पहिर के जहांँ जात रहलीं उहांँ जाईं।
मेरी बात को सुनकर माई की आंँखें डबडबा गईं और उन्होंने जो बताया उसे सुनकर मुझे आत्मिक कष्ट हुआ।
मेरे पूछने उन्होंने बताया कि एक दूसरा किराएदार उसका पति जब कहीं बाहर काम से निकलता है तब वह पहले बाहर जाकर देख लेती है कि माई तो बाहर नहीं बैठी हैं। अगर माई बैठी होती हैं तो वह किसी न किसी बहाने उन्हें अंदर बुलाती है, तब उसका पति बाहर जाता है। क्योंकि उन दोनों का ऐसा मानना था कि विधवा के सामने पड़ने से उनका काम बिगड़ जाता है।
माई की इस तरह की बात को सुनकर मैने उन्हें समझाते हुए कहा। जाए देंही माई जेकर जेतना सोच होला उ ओतने सोचेला।
मेरी ज़िद्द के सामने माई की एक नहीं चली और अंततः वो मेरी साड़ी पहनकर गईं। उनके जाने के बाद मैं सोचने लगी कोई किसी व्यक्ति के साथ ऐसा कैसे कर सकता है! क्या हमने अपना भविष्य देखा हुआ है कि हमारे साथ ऐसा नहीं हो सकता है।
माई फंक्शन से लौटकर मेरी साड़ी वापस कीं, बैठकर मुझसे घंटे बातें कीं और मुझे अपने आशीर्वचनों से सराबोर कर दीं।
तब मुझे समझ में आया कि माई के सामने पड़ने से कोई काम तो नहीं बिगड़ेगा लेकिन उस दिन माई ने जो मुझे आशीर्वाद की गठरी दिया, वह आशीर्वाद की गठरी मेरे बुरे समय में ज़रूर एक सुरक्षा कवच का काम करेगी।
आज 15 वर्ष बीत गए, जीवन है तो सुख- दुख तो आते-जाते रहते हैं। किंतु मैंने अपने जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं खोया जिसकी पूर्ति संभव न हो। और जिसके लिए माई का सामने पड़ना अशुभ था वह अपने दो छोटे-छोटे बच्चों को छोड़कर चार साल पहले ही दुनिया से चल बसी। जबकि वो उसी समय माई का घर छोड़ चुकी थी।
सीख- किसी के सामने पड़ने, छूने से हमारा कोई काम नहीं बिगड़ता हाँ यदि काम बिगड़ता है तो किसी के अंतर्रात्मा को दुखाने से। अतः समय के साथ-साथ हमें अपनी सोच को परिवर्तित करना चाहिए और इस तरह की कुप्रथाओं से परहेज़ करना चाहिए। इसी के साथ समाज को भी इस तरह की कुप्रथाओं को त्यागने के लिए जागरूक करना चाहिए।
साधना शाही,वाराणसी
kashish
27-Feb-2024 02:41 PM
Fantastic
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RISHITA
26-Feb-2024 04:32 PM
Superb
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KALPANA SINHA
26-Feb-2024 11:30 AM
Awesome
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